मंगलवार, 29 नवंबर 2011

(लघु कथा) कुत्तों वाली

 
लोग उसे कुत्तोंवाली कहते थे. जब वो अधेड़ थी तो उसके पास पांच कुत्ते थे. हर 8-10 साल में एक-आध कुत्ता मरता रहता था तो बीच-बीच में दो-चार पैदा होते रहते थे. उसके कुत्तों के भौंकने से पड़ोसी पस्त रहते थे, उसे पड़ोस के बच्चे शोर मचाते लगते थे. पता नहीं किन हीनभावनाओं के चलते उसने विवाह नहीं किया था, जिन्हें न्यायसंगत सिद्ध करने के उसके अपने फ़ंडे थे. परिवार के बारे में भी उसकी अपनी ही अवधारणाएं थीं. बहरहाल, कई लोगों को लगता था कि उसे दुनियादारी का पता नहीं.

बुढ़ापे में एक दिन वह मर गई. उसके उत्तराधिकारियों ने उसके मकान पर कब्ज़ा कर लिया और कुत्ते भगा दिए. कुछ दिन तक तो वे दरवाज़े पर आकर बैठते रहे. फिर एक दिन उन्होंने वहां आना बंद कर दिया. अब, वे कुत्ते उसी दुनिया में थे जिसके बारे में उन्हें भी कुछ पता नहीं था.
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