मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

(कवि‍ता) दंभ



नया दि‍न,
नई सुबह,
सुबह का अख़बार,
पर
अख़बार में भी
ख़बर कुछ भी नहीं.
उफ़्फ
फि‍र भी कि‍तना गुमान कि‍
ज़िंदा हूं मैं.

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2 टिप्‍पणियां:

  1. एक बीता हुआ कल है ज़िन्दगी एक एहसास भर है ,मैं हूँ बस ,हो चाहे कुछ भी नहीं .

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